Skip to main content

भारत: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों का दमन

सुप्रीम कोर्ट का महिलाओं, एलजीबीटी लोगों को सुरक्षा प्रदान करने का फैसला

नई दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हिंदू धार्मिक जुलूस के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा से प्रभावित एक इलाके में मकानों को ध्वस्त करता बुलडोजर, 20 अप्रैल2022. © 2022 एपी फोटो/अल्ताफ कादरी

(जकार्ता) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज अपनी वर्ल्ड रिपोर्ट 2023 में कहा कि भारतीय सरकारी तंत्र ने 2022 में कार्यकर्ता समूहों और मीडिया पर कठोर कार्रवाई और भी तेज तथा व्यापक कर दी. हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली सरकार ने मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों का दमन के लिए उत्पीड़नकारी और भेदभावपूर्ण नीतियों का इस्तेमाल किया.

पूरे भारत में सरकारी तंत्र ने आतंकवाद समेत राजनीतिक रूप से प्रेरित आपराधिक आरोपों के तहत कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सरकार के अन्य आलोचकों को गिरफ्तार किया. उन्होंने कर छापों, वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों और गैर-सरकारी संगठनों को प्राप्त होने वाले विदेशी धन का नियमन करने वाले विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम के इस्तेमाल के जरिए अधिकार समूहों को हैरान-परेशान किया. कई भाजपा शासित राज्यों में अधिकारियों ने विरोध-प्रदर्शनों या कथित अपराधों के लिए फौरी तौर पर सजा देने के नाम पर कानूनी अनुमति या तय प्रक्रिया का पालन किए बगैर मुसलमानों के घरों और संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया.

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, “भाजपा सरकार द्वारा हिंदू बहुसंख्यक विचारधारा को बढ़ावा अधिकारियों और समर्थकों को धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण तथा कई दफा हिंसक कार्रवाई के लिए उकसाता है. सरकारी तंत्र को चाहिए कि आलोचकों को जेल में डालने और अधिकार समूहों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार पार्टी सदस्यों और समर्थकों पर लगाम लगाए."

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 712 पन्नों की विश्व रिपोर्ट 2023, जो कि इसका 33वां संस्करण है, में लगभग 100 देशों में मानवाधिकार स्थितियों की समीक्षा की है. अपने परिचयात्मक आलेख में, कार्यवाहक कार्यकारी निदेशक तिराना हसन ने कहा कि ऐसी दुनिया में जहां सत्ता-समीकरण बदल गए हैं, मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मुख्य रूप से ग्लोबल नार्थ की सरकारों के छोटे समूह पर आश्रित रहना अब संभव नहीं. यूक्रेन के समर्थन में दुनिया की लामबंदी हमें उस असाधारण क्षमता की याद दिलाती है जब सरकारें वैश्विक स्तर पर अपने मानवाधिकार दायित्वों का एहसास करती हैं. हरेक देश, चाहे बड़े हों या छोटे, की जिम्मेदारी है कि वे अपनी नीतियों के जरिए मानवाधिकारों को लागू करें और फिर मानवाधिकारों की रक्षा और बढ़ावा देने की खातिर मिल-जुलकर काम करें.

भारतीय सरकारी तंत्र ने ईसाइयों, खास तौर से दलित और आदिवासी समुदायों के ईसाइयों को हैरान-परेशान करने के लिए जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने वाले कानूनों का दुरुपयोग किया. अगस्त में, भाजपा सरकार ने 2002 के मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान एक गर्भवती मुस्लिम महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के 14 सदस्यों के क़त्ल के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 11 हिन्दुओं की जल्द रिहाई को मंजूरी दे दी. भाजपा के सहयोगियों ने सार्वजनिक रूप से इसका जश्न मनाया, जिसकी व्यापक निंदा हुई. इस कार्रवाई ने अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति, यहां तक कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में भी सरकार के भेदभावपूर्ण रवैये को उजागर किया.

सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर की संवैधानिक स्वायत्त स्थिति रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने के तीन साल बाद भी, सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और अन्य बुनियादी अधिकारों पर बंदिशें लगाना जारी रखा. सरकारी तंत्र ने छापे मारने और मनमाने ढंग से पत्रकारों एवं कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेने के लिए जम्मू और कश्मीर जन सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने के साथ-साथ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आतंकवाद के आरोप लगाए और यहां तक कि पुलित्जर पुरस्कार विजेता कश्मीरी पत्रकार को बिना किसी उचित कारण के भारत से बाहर जाने से रोक दिया. संदिग्ध आतंकवादियों ने मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख समुदायों पर हमले किए.

मई में एक अंतरिम फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने उस औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून के सभी प्रकार के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, जिसका सरकार के आलोचकों को गिरफ्तार करने के लिए बार-बार इस्तेमाल किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति जो भी हो, और सिसजेंडर महिलाओं के अलावा भी अन्य लोगों को कानूनी गर्भपात का अधिकार प्रदान किया. इसने परिवार की परिभाषा को विस्तारित करते हुए समान लिंग वाले जोड़ों, एकल माता-पिता और “असामान्य” माने जाने वाले अन्य परिवारों को इसमें शामिल किया और इन्हें पारिवारिक लाभ के दायरे में लाया.

यौन हमले की उत्तरजीवियों की सुरक्षा से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कौमार्य जांच से संबंधित अपमानजनक “टू फिंगर टेस्ट (दो उंगलियों द्वारा परीक्षण)” पर प्रतिबंध लगा दिया. यह जांच यौन हमले या बलात्कार की उत्तरजीवियों के बारे में यह निर्धारित करने के लिए की जाती थी कि वे “कौमार्य अक्षुण्ण” हैं या “यौन संसर्ग की आदी” हैं. अपने फैसले में अदालत ने यह भी कहा कि ऐसा करने वाला कोई भी व्यक्ति अनुचित व्यवहार का दोषी होगा.

सितंबर में, सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों के परस्पर विरोधी विचारों के कारण देश की सर्वोच्च अदालत इस मामले पर फैसला देने में विफल रही कि बीजेपी के नेतृत्व वाले कर्नाटक राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन सकती हैं या नहीं.

नवंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत की व्यापक आवधिक समीक्षा प्रक्रिया के दौरान, सदस्य देशों ने अल्पसंख्यक समुदायों और कमजोर समूहों की सुरक्षा, लिंग आधारित हिंसा से निपटने, नागरिक समाज की स्वतंत्रता बरक़रार रखने, मानवाधिकार रक्षकों को सुरक्षा प्रदान करने और हिरासत में यातना ख़त्म करने समेत कई मुद्दों पर चिंता जताई और सिफारिशें कीं.

Your tax deductible gift can help stop human rights violations and save lives around the world.

Region / Country